Tuesday, December 11, 2018

कुत्तों का लोकतंत्र

कुत्तों का लोकतंत्र
*****

कुत्ते भौंकते है एक दूसरे पे
फिर चुप हो जाते हैं अचानक

परिस्थितिवश बना लेते है झुंड
पत्थर फेंको तो हो जाते हैं तितर बितर

कुत्ते होते है जंगली
एक दूसरे पर चढ़कर
लड़ पड़ते है एक दूसरे से

हैसियत के हिसाब से कहलाये जाते है पालतू
वफ़ादारी हर कुत्ते को नसीब नहीं होती

हर मोहल्ले में
कुत्ते, कुत्ते जैसे ही दिखते है
पहचाने जा सकते है

इंसानों के बड़े प्रिय है
लगता है हर बात पर खरे उतरेंगे

नहीं समझ पाता इंसान
सिर्फ कुत्ते ही जानते है
भौंकने की वजह
झुंड बनाने की वजह
जंगलीपन की वजह
वफ़ादारी की वजह

पता नहीं बुजुर्गों ने क्यों कहा था कि
कुत्तो का हँसना है बनावटी
और रोना है अपशकुन
कुत्ता काँटेगा तो क्या तुम उसको काटोगे?
कुत्ता भौंकेगा तो क्या तुम उस पर भौंकोगे?

नहीं लड़ सकता कोई
कुत्तों से कुत्ता बनकर
बुजुर्गों से सुना था
कुत्ते कमीने भी होते है।

No comments:

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा में...

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने व्यक्तित्व, अपने चरित्र, अपनी समझ या अपने मद में। हम रह सकते हैं अपने रंग में भी पर कलम से...