Sunday, October 24, 2021

खरपतवार

 


आम के बाग़ीचे में

बादाम के पेड़ को कहते है 

खरपतवार

सम्भावनाएँ

 


बूँदो सी होती है सम्भावनाएँ
पिघला सकती है कोई भी मंज़र

एकमेव मानवता


तुम कह सकते हो 
कि सूरज उगता है 
तुम्हारे बरामदे से 
इतने अद्वितीय और आज़ाद तो तुम हो ही 

मैं कह सकता हूँ 
कि सूरज उगता है 
मेरी बालकनी से 
इतना अद्वितीय और आज़ाद तो मैं हूँ ही 

पर हम दोनों
इतने अद्वितीय और आज़ाद
कभी भी ना हो पाएंगे
कि झुटला दें
सूरज के पूरब से उगने का सच 

विश्व की एकमेव मानवता का 
कष्ट और करुणा
हमें अलग अद्वितीय प्रतीत हो 
हां, इतने विशिष्ट और आज़ाद
हम अवश्य हो गए हैं

पहली बार

अगर पता हो खिलना 

तो नहीं हो सकता कोई पुष्प


अगर पता हो जवाब

तो नहीं हो सकता कोई सवाल


अगर पता हो राह  

तो नहीं हो सकता कोई राही 


अगर पता हो प्रेम

तो नहीं हो सकता कोई प्रेमी


बहुत कुछ 

जो पहली बार हुआ, हो रहा है या होगा

उसका ना तो कोई पता है 

और ना ही कोई ठिकाना

टांगना


उजालों को समेटकर
हमने सीखा उन्हें टांग देना
खुद से दूर कहीं 
एक टिमटिमाती 
झिलमिल झालर के मानिंद

जबकि वादा था ब्रह्मांड से 
ख़ुद उजाला होकर
अँधेरो में घुसपैठ का

टांग देना आसान था हमारे लिए
एक सत्य से भरी पेंटिंग
और दिनभर के झूठ से भरी टी शर्ट
पर मुश्किल था 
उतरकर देखना
अपने ही सूखे कुएँ में
अंधेरे पानी की झील
जो सदियों से भूखी है 
उजालों के इंतज़ार में

बीरबल की खिचड़ी की तरह
हर टंगी हुई चीज़ में 
कुछ पक रहा होता है 
उतारकर खाने के लिए

Friday, February 05, 2021

हमारी चिंता, हमारी मांग, हमारा बदला

हमारी चिंता, हमारी मांग, हमारा बदला
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बाघों ने 
खत्म होते जंगलों पर 
जताई चिंता
किया आंदोलन
मांगे पूरी हुई
बाघ को मिली
छुपने की जगह
हिरण की जान 
अब भी खतरे में है

हिरण ने
जान के खतरे के खिलाफ
किया आंदोलन
रखी मांग की 
बाघ को बनना होगा बिल्ली
मांग पूरी हुई
हिरण अब हो गए
मांसाहारी
बाघ की जान
अब भी खतरे में है

Tuesday, February 02, 2021

बाज़ार

बाज़ार
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मैंने देखा है
मेड इन चाइना वाला 
एंड्रॉयड फोन
राष्ट्रवादियों और देशभक्तों के हाथों में
और 
एप्पल वाला आईफोन
समाजवादियों और कम्युनिस्टों के हाथों में
सब के तर्क थे अपने
किसी ने कहा
फीचर्स बढ़िया है
कैमरा अच्छा है
देखो ना झूट की तस्वीर
कैसे बदल जाती है सच के फिल्टर से
किसी ने कहा
ऑफर बढ़िया है
डिस्काउंट अच्छा है
देखो ना मन की 100% कुंठा 
कैसे दब जाती है बचत के 10% मलबे में
सच जो मैंने देखा
वो इतर था तर्क से
दोनों ही
हाथ जोड़ने की मुद्रा में
दोनों हाथ
फोन के पीछे लेकर
अपने फोन और दोनों अंगूठों को
अपने चुल्लू में दबाकर
दोनों आंखों को फोन में गड़ाकर
नतमस्तक थे
बाज़ार के सामने

Sunday, January 31, 2021

परिवर्तन की लहर

परिवर्तन की लहर
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रखा जाता है
मजदूर को मजदूर
और किसान को किसान
गरीब मर जाता है 
पर गरीबी की समस्या नहीं
जो खुद हिस्सा है समस्या का
वो ही देते रहते है 
समस्या के समाधान पर व्याख्यान
और मैं सोचता रहता हूं 
कि कौन है ये लोग?
जिन्हे प्राप्त है दिव्य ज्ञान
जबकि मैं तो अब तक 
ठीक ठीक यह भी पता नहीं लगा पाया
कि मेरी अगली लघु शंका का
क्या है निर्धारित समय?
फिर भी चलती जाती है कलम
बढ़ती जाती है पोथियां
वो कहते रहते है कि हमें पढ़ो
भला होगा तुम्हारा 
बीत गए 5000 वर्ष
पर अब भी पैदा होते रहते है
राष्ट्रवादी, समाजवादी वगरैह
इसका एक अर्थ 
यह भी हो सकता है
कि समस्या कोई वरदान हो
वाद के अमरत्व का
जो सतत है प्रयासरत
कहता रहता है बेझिझक
ढूंढो नए शब्द, नई भाषा
और मारक बनाओ विचारों को
इतना मारक कि
करुणा से भरी संवेदना भी
क्रांति पर उतारू हो जाए
भक्ति से भरी भावनाएं भी
मारकाट पर उतर आए
बस मुद्दे से भरी कोई बात हो
तो वो कहीं दब कर रह जाए
वरना लिखने के लिए 
कहां से पैदा होगा 
कोई जिंदा विचार?
नए विचार की बोतल में 
परोसते रहो
पुराने वाद का नशा
लगेगा चल पड़ी है कोई लहर
बदल रहा है बहुत कुछ
पर बदलेगा वह नहीं
जिसका आवश्यक है बदलना
परिवर्तन संसार का नियम है
सत्ता, राजनीति, वाद  
और समस्याओं का नहीं

Sunday, January 24, 2021

कहावतों का आरक्षण

कहावतों का आरक्षण
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कहावतों का
नहीं होता कोई
कोटा सिस्टम
एक मछली 
जो पानी को गंदा करती है
वो राजा भी हो सकती है
और रंक भी

वन बाय टू मंचाओ सूप

वन बाय टू मंचाओ सूप
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पता नहीं कैसे
वो बात 
वन बाय टू मंचाओ सूप से होकर
हिंदू मुस्लिम, 
लेफ्ट और राइट, 
ब्लैक और व्हाइट तक पहुंच गई

जिसने प्लेस किया था ऑर्डर
वो कह रहा था
चीज़ें बांटकर खाओ
तो बढ़ता है प्यार
और पैसे जो बचते है वो अलग
हमने ये नहीं पूछा
किसके बीच 
किसके पैसे
बस मान कर 
पीने लगे सूप
कोई भी बात में
प्रेम और किफायत को जोड़ दो
तो दिल में बसी भावनाएं
तर्क को खा जाती है
प्रेम शब्द ही बड़ा अनोखा है
होता कम है
शोशा ज़्यादा है
और किफायत भी
किसी नशे से कम नहीं
चंद टुकड़ों की मोहलत पर
ना बिकने के मुगालते में
हम खरीद लिए जाते है
हैंगोवर तक पता नहीं होता
शर्तें लागू है

कोई आश्चर्य नहीं 
कि इंसानियत के मेनू पर
इंसानियत के ठेकेदारों ने
लगा रखी हो
प्रेम की बेतहाशा कीमत

वन बाय टू से
ना ही बढ़ता है प्रेम
और ना ही बचते है पैसे
बस बट जाते है हम
अनजाने में
चलाने
कुछ सियासतदानों की
दुकान

कभी साथ बैठ कर
ठहाके लगाते हुए
एक एक कप चाय ही पी लो
तो मालूम हो
कि प्रेम उस अदरक में था
जो कटी नहीं बटी नहीं
बस कीस कर 
अपनी महक के साथ
घुलती चली गई 
स्नेह से भरी 
एक प्याली चाय में


पता नहीं, शायद