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समस्या है
हवस बन चुकी प्यास से
जिसने खुलवाएं है
हर हवेली में पानी के कोठे
जहाँ हर रोज़ होती है
पानी के साथ अय्याशियाँ
कभी घन्टो नहाने के नाम पर
कभी रोज़ कार धोने के नाम पर
कभी आँगन में पानी छिड़कने के नाम पर
कभी रोज़ कपड़े धोने के नाम पर
कभी खत्म हो जाए पानी
नोटों की गड्डियाँ फेंककर
जबरन भरवाते है पानी
कोठों में
तो कोई कैसे भिजवाए संदेस कि
भैया, सूखे का अंदेशा है
आय्याशियाँ खत्म हो गई हो
तो आओ कभी हवेली पे।