Saturday, April 27, 2019

एक पत्थर है मुझमें

1. हाथ मलता हूँ
आँखों पर
तो हाथों से
निकलता है खून
आखों से नहीं
निकलता है पानी
2. दीवाना सर
देखेगा जब
दिल के ज़ख्म
जिस्म के चीथड़ों में
उससे बदला लेने का ख्याल
फिर भी नहीं आएगा तुम्हें
उस पर सर पटक कर
सर फोड़ना चाहोगे तुम
3. मेरा गुरुत्वाकर्षण प्रेम
मेरे भार का रहस्य
मत जानना कभी
मुझे चीजों से बाँधकर
बस फेंका जा सकता है,
समझना ही है,
तो फर्क समझो
उछलने और उड़ने में
4. तराशों मुझे,
जैसा चाहोगे तुम
दिख जाऊँगा वैसा
पर लाख चोट खाकर भी
ढल नहीं पाऊँगा
जब तक गल ना जाऊँ
जब तक पीस ना दिया जाऊँ
मैं बस बन जाता हूँ
मेरी ही मिट्टी से
होता थोड़े ही हूँ.

Saturday, April 20, 2019

कवेलू

टप टप टपककर
बूँद बूँद आसमान
समा सके मुझमें

कोई हटा रहा हो
मध्यम रोशनी से
मेरा बिखरा अंधेरा

ज़िन्दगी की jigsaw puzzle
जिसके हर हिस्से तक
पहुँच सके मेरा हाथ

मकड़ियों की बुनी कविता
गिर जाए कभी
मेरे दामन में

कवेलू की छत
आज भी है
मेरे सिर पर
टूटे हुए कवेलू से
पिट्टू खेलना
अब भी
भूला नहीं हूँ मैं

पता नहीं, शायद