उस बतख को देखो
वह शांत है बाहर से
पर बेचैन है भीतर ही भीतर
फड़फड़ा रही है उड़ने को
पर उड़ना नहीं जानती
जब उड़ेगी तो कोई
लिखेगा उसकी आत्मकथा
पर नहीं लिखेगा बेचैनी
बेचैनी लिखो
तो आग लग जाती है कागज़ में
पिघल जाती है कलम
बेचैनी की किताब के अक्षर
बेचैन हुए बिना
भला कैसे पढ़ सकता है कोई?