Friday, December 18, 2020

तथाकथित आत्मकथा

 उस बतख को देखो

वह शांत है बाहर से

पर बेचैन है भीतर ही भीतर

फड़फड़ा रही है उड़ने को 

पर उड़ना नहीं जानती

जब उड़ेगी तो कोई

लिखेगा उसकी आत्मकथा

पर नहीं लिखेगा बेचैनी

बेचैनी लिखो

तो आग लग जाती है कागज़ में

पिघल जाती है कलम

बेचैनी की किताब के अक्षर

बेचैन हुए बिना

भला कैसे पढ़ सकता है कोई?

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