Sunday, January 24, 2021

वन बाय टू मंचाओ सूप

वन बाय टू मंचाओ सूप
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पता नहीं कैसे
वो बात 
वन बाय टू मंचाओ सूप से होकर
हिंदू मुस्लिम, 
लेफ्ट और राइट, 
ब्लैक और व्हाइट तक पहुंच गई

जिसने प्लेस किया था ऑर्डर
वो कह रहा था
चीज़ें बांटकर खाओ
तो बढ़ता है प्यार
और पैसे जो बचते है वो अलग
हमने ये नहीं पूछा
किसके बीच 
किसके पैसे
बस मान कर 
पीने लगे सूप
कोई भी बात में
प्रेम और किफायत को जोड़ दो
तो दिल में बसी भावनाएं
तर्क को खा जाती है
प्रेम शब्द ही बड़ा अनोखा है
होता कम है
शोशा ज़्यादा है
और किफायत भी
किसी नशे से कम नहीं
चंद टुकड़ों की मोहलत पर
ना बिकने के मुगालते में
हम खरीद लिए जाते है
हैंगोवर तक पता नहीं होता
शर्तें लागू है

कोई आश्चर्य नहीं 
कि इंसानियत के मेनू पर
इंसानियत के ठेकेदारों ने
लगा रखी हो
प्रेम की बेतहाशा कीमत

वन बाय टू से
ना ही बढ़ता है प्रेम
और ना ही बचते है पैसे
बस बट जाते है हम
अनजाने में
चलाने
कुछ सियासतदानों की
दुकान

कभी साथ बैठ कर
ठहाके लगाते हुए
एक एक कप चाय ही पी लो
तो मालूम हो
कि प्रेम उस अदरक में था
जो कटी नहीं बटी नहीं
बस कीस कर 
अपनी महक के साथ
घुलती चली गई 
स्नेह से भरी 
एक प्याली चाय में


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