Friday, December 28, 2018

ढलती हुई सकारात्मक सोच

ढलती हुई सकारात्मक सोच
*****

भले ही पंख नहीं हैं उसके
कम से कम कोशिश तो करता है उड़ने की

भले ही चल नहीं सकता है वो
कम से कम बैठा तो नहीं रहता है एक जगह पर

भले ही ग़रीबी में गुजर बसर है उसकी
कम से कम चोरिया तो नहीं करता मोहल्ले में
*
भले ही नटखट है वो
कम से कम उपद्रवी तो नहीं

भले ही मुँहफट है वो
कम से कम गाली तो नहीं देता

भले ही अनपढ़ है वो
कम से कम नालायक तो नहीं
*
भले ही वह खाता है ऊपर की कमाई
कम से कम दान तो करता है मंदिर में

भले ही वो धूर्त है अव्वल दर्जे का
कम से कम साथ लेकर तो चलता है सबको

भले ही उसके हाथ रंगे है खून से
कम से कम वो हाथ धोकर तो खाना खाता है

Wednesday, December 26, 2018

मैं खो जाऊँ अगर तुम में, तो मुझको लापता रखना, मोहब्बत में दीवानों को, गुमशुदी रास आती है।

Saturday, December 22, 2018

मुझ में भी है

करो खारिज मुझे तो जान पाऊँ
जो मुझसे है जुदा पर मुझ में भी है।

कटोरा आस है सिक्के उम्मीदें
कहीं तो एक भिखारी मुझ में भी है।

तुम्हारे इश्क़ में दलदल हुआ हूँ
तुम्हारा एक पत्थर मुझ में भी है।

तरस क्यों खाते हो नंगे बदन पर
गरम जज़्बों का कम्बल मुझ में भी है।

ज़मीं पर रहता हूँ मैं बहता पानी,
विचरता आसमाँ एक मुझ में भी है

Thursday, December 20, 2018

मेरे पंखों का रंग



मेरे पंखों का रंग
*****

शायद मैं रुक जाता
शायद मैं काट देता उन्हें
शायद मैं अपने रास्ते की हवाओं की दुर्गन्ध को
मान लेता अपनी सभ्यता
शायद मैं चल देता उस रास्ते पर
जिसे मैं नहीं चाहता था खोजना
शायद मैं आसमान से
औंधे मुँह गिरने की करामात दिखाकर
बटोरने लगता वाहवाही
शायद टूटकर बिखरने की क्रिया को
मैं मान बैठता अपनी उपलब्धि
शायद मैं अपने निशां ढूंढ़ता
जब अगली बार उड़ता हवाओं में

अच्छा है
तुमने मेरे पंखों का रंग
नहीं बताया मुझे

Tuesday, December 18, 2018

अनभिज्ञ फूट

अनभिज्ञ फूट
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दो लोमड़ियों के बीच की लड़ाई
होती है
दो बंदरों को लड़वाने के लिए
बंदरों को ये बात
कई जन्मों से
मनुष्य बनकर भी
पता नहीं चल पायी
वैसे, लोमड़ियों ने
अपने पुनर्जन्म के विषय में
शास्त्रों में लिखी बातों को
जला दिया था
बिगबैंग के तुरंत बाद.

धर्मनिरपेक्षता का लायसेंस

धर्मनिरपेक्षता का लायसेंस
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उसने किसी भी संगठित विचारधारा को खारिज किया पर उसका मज़ाक नहीं उड़ाया या उस पर कभी भद्दी टिपण्णी नहीं की. उसने हर तरीके के नरसंहार एवं युद्ध का विरोध किया पर नरसंहार के बदले में नरसंहार का पक्ष नहीं लिया। उसने अपनी आस्था के विषय में कभी बात नहीं की और ना ही उसका प्रचार किया। वो जहाँ खड़ा था उसने वहाँ से अपनी बात रखी, किसी मंच की माँग नहीं की. वो हाथों में घडी नहीं पहनता था, क्योंकि उसे खुद के समय होने का आत्मविश्वास था. कौतुहलवश एक दिन उससे पूछा गया, तुम कौन हो, उसने कहा "इस विश्व का सार्वभौमिक नागरिक". दुर्भाग्यवश धर्मनिरपेक्षता के शब्दकोष में निरपेक्षता का अर्थ सार्वभौमिकता के करीब नहीं था, इसीलिए उसे धर्मनिरपेक्षता का लायसेंस नहीं दिया गया, पर किसी अज्ञात कारण से उसे सार्वभौमिक रूप से साम्प्रदायिक कहा जाने लगा.

एक समय था, जब एक शख़्स ने कहा कि सूरज पृथ्वी के इर्द गिर्द नहीं घूमता, बल्कि पृथ्वी सूरज के चक्कर लगाती है, उस शख़्स को मृत्युदंड दिया गया. इस बात को आज के समय में भी ठीक ठीक कह पाना और समझ पाना बहुत कठिन है.

Sunday, December 16, 2018

बेतरतीब मसले

बेतरतीब मसले
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जानवरों को
क्यों नहीं होती इच्छा
नहाने की?

प्रयोग के तौर पर
कई दिनों तक
एक घोड़े को
नहलाया गया
इत्र से

घोड़े से
आज भी अपेक्षित है
जवाब

Wednesday, December 12, 2018

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प्रार्थना की कतारों में सवालों को खड़ा देख मुस्कुरा उठे जवाब और फ़ैल गयी खुशियाँ चारो ओर मानों सवालों को मिला हो अमर होने का वरदान जवाब स्थापित हैं भूलभुलैया में पथराई सी मुस्कान लिए निहायत ही तनहा निहायत ही अनछुए भटकाव एक रस है जो देता है कुछ ढूँढने का नशा भूल से नहीं बनती है भूलभुलैया भूल से प्रवेश ज़रूर होता है उसमें भूलभुलैया से गुज़रते हुए डर के मारे सवाल भूल जाता है सवाल ढूँढने का नशा जवाब का प्रसाद पाते ही उतर जाता है और मिलता है एक अनुभव जो मरने नहीं देता पार्थना की कतारों में खड़े सवाल। #bhutandiaries #bhutan #buddhism #stupa #stupa #sky #nature #morning #clouds #ighub #iggood #instalike #instaclick #picoftheday #visualtreat #instagram #travel #fun #family #enjoyment #poetryreading #poetry #hindikavita
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मैं वहीं मिलूँगा

मैं वहीं मिलूँगा
जहाँ तुम छोड़ गए थे मुझे

निकल पड़े थे तुम
अगले पड़ाव पर
जिसके बारे में
तुमने बताया तो था
पर समझ नहीं पाया था मैं शायद
तुम अपनी धुन में चलना चाहते थे
मैं चाहता था संगत देना तुम्हारी धुन पर
तुम तीनताल में थे
मैं कहरवा में था
तुम नहीं रुक पाए
कहरवा के अगले आवर्तन तक
जहाँ संभावनाएं थी
सम मिलने की
तुम्हें अचानक लगा होगा
लय छूट रही है
तुम खाली पर ही उठ पड़े
मैं भी रुक गया था खाली पर
एक आवर्तन का
खत्म ना हो पाना
जन्म दे चुका था
एक इंतज़ार को
जिसकी लय और ताल
निर्धारित करने की आज़ादी
मिल गयी थी हमें

सोलह मात्राओं में
सपने देखना छोड़ दिया था मैंने
फैसला हो चुका था
अब रूपक में ही काटनी थी ज़िन्दगी
मेरा विस्तार तीनताल की खाली पर रुक चुका था
मेरा इंतज़ार रूपक की सांतवी मात्रा तक पहुँच कर
लौट आता था सम पर
जो सम होकर भी खाली था

एक उम्मीद अब भी है
शायद तुम सजा रहे होंगे
तुम्हारे हिस्से का इंतज़ार
कहरवा में
और
मैं वहीं मिलूँगा
जहाँ तुम छोड़ गए थे मुझे।

Tuesday, December 11, 2018

कुत्तों का लोकतंत्र

कुत्तों का लोकतंत्र
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कुत्ते भौंकते है एक दूसरे पे
फिर चुप हो जाते हैं अचानक

परिस्थितिवश बना लेते है झुंड
पत्थर फेंको तो हो जाते हैं तितर बितर

कुत्ते होते है जंगली
एक दूसरे पर चढ़कर
लड़ पड़ते है एक दूसरे से

हैसियत के हिसाब से कहलाये जाते है पालतू
वफ़ादारी हर कुत्ते को नसीब नहीं होती

हर मोहल्ले में
कुत्ते, कुत्ते जैसे ही दिखते है
पहचाने जा सकते है

इंसानों के बड़े प्रिय है
लगता है हर बात पर खरे उतरेंगे

नहीं समझ पाता इंसान
सिर्फ कुत्ते ही जानते है
भौंकने की वजह
झुंड बनाने की वजह
जंगलीपन की वजह
वफ़ादारी की वजह

पता नहीं बुजुर्गों ने क्यों कहा था कि
कुत्तो का हँसना है बनावटी
और रोना है अपशकुन
कुत्ता काँटेगा तो क्या तुम उसको काटोगे?
कुत्ता भौंकेगा तो क्या तुम उस पर भौंकोगे?

नहीं लड़ सकता कोई
कुत्तों से कुत्ता बनकर
बुजुर्गों से सुना था
कुत्ते कमीने भी होते है।

फुगड़ी

फुगड़ी
***
रूह की कलम में
झूमती हुई स्याही ने
मन के कागज़ संग
कुछ इस कदर खेली है फुगड़ी
सब कुछ उड़ रहा है
अंदर ही अंदर
एक ठहराव लिए हुए
उस हर्षित शब्द की तरह
जिसे अभी अभी पता चले हैं
अपने मायने

नज़्मों संग
फुगड़ी खेलते खेलते
एक कविता
सूफी हो गयी है।

एक तार की चाशनी

एक तार की चाशनी
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"कलह मत करो
घी ज़्यादा जलता है
कढ़ाही में",
यह आवाज़ आयी
एक तार की चाशनी से
जो निथरते निथरते
उछलती जा रही थी
घर के चूल्हे के आस पास,
एक मिठास सी घुल चुकी थी
कढ़ाही से तलकर
बाहर आये त्यौहार में,
जो तैयार था
यादों की लार बनने के लिए.

चाशनी
जब एक तार की हो,
तब मिठास उतरती है गहरी,
मालपुए
नहीं लगते है पांचट* ,
दादी का ये टेलीग्राम
हर त्यौहार गूँजता है घर में.

कुछ इसी तर्ज पर
एक तार था खुशबू का
एक तार में कुछ आवाज़ें थी,
एक तार में थी कुछ रंगत
कुछ स्वाद था कुछ बातें थी,
कई तार थे हमारे पास
मोहल्ले के हर पते तक
बेख़ौफ़ पहुँचने के लिए,
बहुत कुछ तार तार हो गया है
जब से बंद हुए है ये टेलीग्राम.

इंटरनेट पर
सब बना तो लेते है चाशनी
पर एक तार की मिठास
तो टेलीग्राम ही जाने.

इस पांचट* समय में
एक तार की प्रासंगिकता पर
एक कविता लिखना
एक तार की चाशनी बनाने से
कम मुश्किल नहीं.

एक तार की चाशनी ने
घर के चूल्हे से
फिर लगाई आवाज़
"कलह मत करो
घी ज्यादा जलता है
कढ़ाही में".

*पांचट एक मराठी शब्द है जो अक्सर तब इस्तेमाल होता है जब किसी चीज़ का स्वाद अपेक्षा के अनुरूप ना हो.

Be alone but don't be isolated

पता नहीं, शायद