Tuesday, December 11, 2018

फुगड़ी

फुगड़ी
***
रूह की कलम में
झूमती हुई स्याही ने
मन के कागज़ संग
कुछ इस कदर खेली है फुगड़ी
सब कुछ उड़ रहा है
अंदर ही अंदर
एक ठहराव लिए हुए
उस हर्षित शब्द की तरह
जिसे अभी अभी पता चले हैं
अपने मायने

नज़्मों संग
फुगड़ी खेलते खेलते
एक कविता
सूफी हो गयी है।

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