Tuesday, December 11, 2018

एक तार की चाशनी

एक तार की चाशनी
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"कलह मत करो
घी ज़्यादा जलता है
कढ़ाही में",
यह आवाज़ आयी
एक तार की चाशनी से
जो निथरते निथरते
उछलती जा रही थी
घर के चूल्हे के आस पास,
एक मिठास सी घुल चुकी थी
कढ़ाही से तलकर
बाहर आये त्यौहार में,
जो तैयार था
यादों की लार बनने के लिए.

चाशनी
जब एक तार की हो,
तब मिठास उतरती है गहरी,
मालपुए
नहीं लगते है पांचट* ,
दादी का ये टेलीग्राम
हर त्यौहार गूँजता है घर में.

कुछ इसी तर्ज पर
एक तार था खुशबू का
एक तार में कुछ आवाज़ें थी,
एक तार में थी कुछ रंगत
कुछ स्वाद था कुछ बातें थी,
कई तार थे हमारे पास
मोहल्ले के हर पते तक
बेख़ौफ़ पहुँचने के लिए,
बहुत कुछ तार तार हो गया है
जब से बंद हुए है ये टेलीग्राम.

इंटरनेट पर
सब बना तो लेते है चाशनी
पर एक तार की मिठास
तो टेलीग्राम ही जाने.

इस पांचट* समय में
एक तार की प्रासंगिकता पर
एक कविता लिखना
एक तार की चाशनी बनाने से
कम मुश्किल नहीं.

एक तार की चाशनी ने
घर के चूल्हे से
फिर लगाई आवाज़
"कलह मत करो
घी ज्यादा जलता है
कढ़ाही में".

*पांचट एक मराठी शब्द है जो अक्सर तब इस्तेमाल होता है जब किसी चीज़ का स्वाद अपेक्षा के अनुरूप ना हो.

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