Monday, August 05, 2019

दोस्ती की फ़िराक़ में

दोस्ती की फ़िराक़ में
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एक कली जो उम्मीद से थी
आज सुबह
खिलकर महक उठी है

चाय में
अदरक का अखबार
डाल गया है कोई
भगाने कल का हैंगओवर

सूरज उगा है इस उम्मीद में
शायद आज तुमसे बात हो पाए

हर दिन तुम पर खर्च कर रहा है
12 घण्टे

दिन भर असीम संभावनाएं
आंखें चार करती है तुमसे

रात के अंधेरो को
तुमसे भी है उजाले की उम्मीद

बहुत कुछ घटित हो रहा है
तुम्हारे आसपास
पूरी कायनात
दोस्ती की फ़िराक़ में है तुमसे

तुम किस फ़िराक़ में हो?
मुमकिन हो शायद
इस सवाल से दोस्ती

पता नहीं, शायद