अनजान दोस्त
--गौरव भूषण गोठी
फूल और कांटे
दरख्तों की दुनिया के दो बाशिंदे
एक दूजे से
उखड़े उखड़े
एक दूजे में
उलझे उलझे
कोई डाल हिलाओ
तो लड़ ही पड़ते है
काँटो का चुभना
रास नहीं आता फूलों को
फूलों का खिलना
रास आया दरख्तों को भी
फूलों को जब टूटने से बचाया काँटो ने
तब दरख्तों को तजुर्बा हुआ
और बाग़ीचे में फैल गई तजुर्बे की खुशबू
फूल और काँटे
अब भी उलझे है एक दूसरे में
सिर्फ दरख्तों और बाग़ीचे को पता है
दोनों की गहरी दोस्ती।
© 2017 गौरव भूषण गोठी