Sunday, November 26, 2017

अनजान दोस्त

अनजान दोस्त
--गौरव भूषण गोठी

फूल और कांटे
दरख्तों की दुनिया के दो बाशिंदे
एक दूजे से
उखड़े उखड़े
एक दूजे में
उलझे उलझे
कोई डाल हिलाओ
तो लड़ ही पड़ते है
काँटो का चुभना
रास नहीं आता फूलों को
फूलों का खिलना
रास आया दरख्तों को भी
फूलों को जब टूटने से बचाया काँटो ने
तब दरख्तों को तजुर्बा हुआ
और बाग़ीचे में फैल गई तजुर्बे की खुशबू
फूल और काँटे
अब भी उलझे है एक दूसरे में
सिर्फ दरख्तों और बाग़ीचे को पता है
दोनों की गहरी दोस्ती।
© 2017 गौरव भूषण गोठी

Saturday, November 25, 2017

एंट्रॉपी

टूटा दिल जुड़कर भी पूरा दिल नहीं बन पाएगा,
एंट्रॉपी के थमने तक ये खाक भी हो जाएगा।

कौतुहल अर्जुन को था तब कृष्ण ने गीता पढ़ी,
बेसबब जो राय देगा, रायचंद कहलायेगा।

रास्ता जो दिखता है वो रास्ता होता नहीं,
रास्ता जो तुमसे होगा रास्ता कहलायेगा।

चुनने की ताकत है सब में चुनने की बरकत नहीं,
सब में रब जो देख लेगा, सब में रब चुन पायेगा।

फूल हो तो महकने की शर्तों पर जीते हो क्यों?
बेसबब महकेगा जो भी वो ख़ुदा कहलायेगा।

© 2017 गौरव भूषण गोठी

Friday, November 24, 2017

ठिकाने

ठिकाने मुझसे अक्सर पूछते है,
ठिकाना मेरा मुझसे पूछते है।

दीवारों की पुताई कैसे होगी?
मजहब के रंग मुझसे पूछते है।

नहीं बन पाए है इंसान अब तक
खुदा से गुर खुदा के पूछते है।

मेरे जीने से कुछ मतलब नहीं था,
सबब मरने का मुझसे पूछते है।

© 2017 गौरव भूषण गोठी

पता नहीं, शायद