परिवर्तन की लहर
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रखा जाता है
मजदूर को मजदूर
और किसान को किसान
गरीब मर जाता है
पर गरीबी की समस्या नहीं
जो खुद हिस्सा है समस्या का
वो ही देते रहते है
समस्या के समाधान पर व्याख्यान
और मैं सोचता रहता हूं
कि कौन है ये लोग?
जिन्हे प्राप्त है दिव्य ज्ञान
जबकि मैं तो अब तक
ठीक ठीक यह भी पता नहीं लगा पाया
कि मेरी अगली लघु शंका का
क्या है निर्धारित समय?
फिर भी चलती जाती है कलम
बढ़ती जाती है पोथियां
वो कहते रहते है कि हमें पढ़ो
भला होगा तुम्हारा
बीत गए 5000 वर्ष
पर अब भी पैदा होते रहते है
राष्ट्रवादी, समाजवादी वगरैह
इसका एक अर्थ
यह भी हो सकता है
कि समस्या कोई वरदान हो
वाद के अमरत्व का
जो सतत है प्रयासरत
कहता रहता है बेझिझक
ढूंढो नए शब्द, नई भाषा
और मारक बनाओ विचारों को
इतना मारक कि
करुणा से भरी संवेदना भी
क्रांति पर उतारू हो जाए
भक्ति से भरी भावनाएं भी
मारकाट पर उतर आए
बस मुद्दे से भरी कोई बात हो
तो वो कहीं दब कर रह जाए
वरना लिखने के लिए
कहां से पैदा होगा
कोई जिंदा विचार?
नए विचार की बोतल में
परोसते रहो
पुराने वाद का नशा
लगेगा चल पड़ी है कोई लहर
बदल रहा है बहुत कुछ
पर बदलेगा वह नहीं
जिसका आवश्यक है बदलना
परिवर्तन संसार का नियम है
सत्ता, राजनीति, वाद
और समस्याओं का नहीं