ठिकाने मुझसे अक्सर पूछते है,
ठिकाना मेरा मुझसे पूछते है।
दीवारों की पुताई कैसे होगी?
मजहब के रंग मुझसे पूछते है।
नहीं बन पाए है इंसान अब तक
खुदा से गुर खुदा के पूछते है।
मेरे जीने से कुछ मतलब नहीं था,
सबब मरने का मुझसे पूछते है।
© 2017 गौरव भूषण गोठी
ठिकाना मेरा मुझसे पूछते है।
दीवारों की पुताई कैसे होगी?
मजहब के रंग मुझसे पूछते है।
नहीं बन पाए है इंसान अब तक
खुदा से गुर खुदा के पूछते है।
मेरे जीने से कुछ मतलब नहीं था,
सबब मरने का मुझसे पूछते है।
© 2017 गौरव भूषण गोठी
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