Friday, November 24, 2017

ठिकाने

ठिकाने मुझसे अक्सर पूछते है,
ठिकाना मेरा मुझसे पूछते है।

दीवारों की पुताई कैसे होगी?
मजहब के रंग मुझसे पूछते है।

नहीं बन पाए है इंसान अब तक
खुदा से गुर खुदा के पूछते है।

मेरे जीने से कुछ मतलब नहीं था,
सबब मरने का मुझसे पूछते है।

© 2017 गौरव भूषण गोठी

No comments:

पता नहीं, शायद