पैरेंट टीचर मीट पे जब हम पहुँचे पाठशाला।
मेन गेट पे लगा हुआ था एक बड़ा सा ताला।
एक बड़ा सा ताला देख के सर चकराया।
सिक्योरिटी ने आके हमको सब समझाया।
ख़ास किस्म के लोग यहाँ पर लाते अपनी कारें।
आप तो आम है कृपया अगले गेट से आप पधारें।
सर चकराना बंद हुआ पर बहुत ही गुस्सा आया।
सिक्योरिटी को मन ही मन में हमने ख़ूब सुनाया।
खूब सुनाया गुस्से में और कार घुमाई।
अगले गेट पे पहुँचे और एंट्री करवाई।
अंदर तो हर ओर लगा था कारों का रंग रेला।
मानो जैसे लगा हुआ हो कोई कुम्भ का मेला।
कुम्भ का मेला देख लगा कि कोई बिछुड़ ना जाए।
इसीलिए हम कार हमारी पेड़ से बाँध के आए।
बाँध के आए कार, शिशु भी बाँध के लाए।
जैसे तैसे क्लास रूम तक हम आ पाए।
बच्चों से मिल के हम सब भी बन जाते है बच्चे।
बचपन के दिन वाकई में होते थे कितने सच्चे।
क्लास रूम में मचा हुआ था ये कैसा कोहराम।
पैरेंट खाएं टीचर का सर टीचर जपे श्री राम।
टीचर जपे श्रीं राम, हमारा नंबर आया।
मुझको अपने बालक के संग पास बुलाया।
टीचर बोली आप से ये उम्मीद नहीं थी पालक।
बहुत ही मस्ती करता है ये आपका नटखट बालक।
तुरत फुरत में हमने बालक से माफ़ी मंगवाई।
ना चाहकर भी हंसी ख़ुशी से कसम भी हमने खाई।
कसम भी हमने खाई और फिर जोश उड़ गए।
मार्क्स सुने जब हमने और फिर होश उड़ गए।
बालक को समझाया कुछ तो रखो पिता की इज़्ज़त।
मुफ़्त में क्यों करवाते हो तुम जनता बीच फ़ज़ीहत।
घर पहुंचे और खत्म हुआ ये पिता गुरु सम्मेलन।
इससे तो अच्छा मैं हो आता कोई कवि सम्मेलन।
पैरेंट टीचर मीट बन गया फैशन का एक अड्डा।
एक तरफ है मिसेस शर्मा एक तरफ मिस चढ्ढा।
पैरेंट कहलाते है कस्टमर, टीचर बन गए एजेंट।
जिसकी जितनी जेब है गहरी उसमे उतना टैलेंट।
कहने को तो शिक्षा का सबको मौलिक अधिकार।
सबने मिलके इसको भी अब बना दिया व्यापार।
डरा डरा के सबको लूटो यही कहता है प्रबधंन।
सरस्वती के भक्तो पर अब उल्लुओ का है बंधन।