Saturday, February 23, 2019

युद्धस्तर पर विश्व शांति की खोज

युद्धस्तर पर विश्व शांति की खोज
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कौन है ये विश्व शांति?
बहुत उत्पात मचा रखा है इसने

मुझे किसी भी कीमत पर
विश्व शांति चाहिए
ज़िंदा या मुर्दा

पूरे शहर में पोस्टर लगवा दो
ताकि पहचानने में
किसी को दिक्कत ना हो
सुना है सरकार ने इनाम भी रखा है
जो विश्व शांति की देगा खबर
गुप्त रखी जाएगी उसकी पहचान

एक दफा हाथ आ जाए बस
ऐसी धाराएँ लगाऊँगा
ज़िन्दगी भर जेल की चक्की पीसेगी
उम्र कैद तो पक्की समझो
गर फांसी हुई
तो तय समझो
विश्व शांति की दहशत से छुटकारा.

Friday, February 22, 2019

तुम्हारी मोहब्बत

तुम्हारी
खूबसूरत बातों का
तकिया बनाकर
रख दिया है
सिरहाने
जो रुई जैसे
नरम मुलायम वाकये
सुनाये थे तुमने
वो अब लफ्ज़ लफ्ज़
घुल रहें हैं
कानों में
तुम्हारी
खिलखिलाती हंसी का पिलो कवर
खूब सज रहा है
तुम्हारी बातों के तकिये पर
तुम्हारी आंखों से
अपनी मोहब्बत के
जो ख़्वाब देखे थे हमने
वो सुकून से है
सो रहे है
सिरहाने

ज़ुकाम-ए-इश्क़

ज़ुकाम-ए-इश्क़ से मेरा अजब ये राबता देखो,
तबीयत खुश्क है लेकिन सुकून-ए-दिल भी कायम है।

मुकम्मल हैं नहीं कुछ भी

मुकम्मल हैं नहीं कुछ भी, तलाशी लेनी है खुद की,
हम ही है वो जवाब-ए-ग़म जिसे हम ढूंढने निकले।
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पक्षियों की आकाशगंगा ज़मीन से उठकर छा जाना चाहती है पूरे ब्रह्मांड में तारों के बनिस्बत आकाश पर बिना हक़ जताए उजालों में टिमटिमाना मानों कोई नए सिरे से लिखना चाहता हो रात की परिभाषा #madikeridairies #trees #nature #amazing #evening #colorful #sky #treebranch #ighub #iggood #instalike #instaclick #picoftheday #visualtreat #instagram #travel #fun #family #enjoyment #landscape #poetryreading #poetry #hindikavita

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Sunday, February 10, 2019

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आसमां को सिर्फ देखने भर से बादलों में उतर आयी थी मेरी आग मुझे बंद करनी पड़ी थी मेरी आँखे कुछ ऐसा ही मंज़र ज़मीं पर चाह रहा था मैं पर ये संभव नहीं था अब मैं देख पा रहा था स्पष्ट रूप से, आखिर बादलों ने क्यों चुना होगा आसमाँ और हमने क्यों चुनी होगी ज़मीं? #inair #fromtheflightdeck #morning #sunlight #sky #reflection #horizon #ighub #iggood #instalike #instaclick #picoftheday #visualtreat #instagram #travel #fun #hindikavita #poetryreading #poetry #clouds #colorful

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Friday, February 01, 2019

पैरेंट टीचर मीट


पैरेंट टीचर मीट पे जब हम पहुँचे पाठशाला।
मेन गेट पे लगा हुआ था एक बड़ा सा ताला।

एक बड़ा सा ताला देख के सर चकराया।
सिक्योरिटी ने आके हमको सब समझाया।

ख़ास किस्म के लोग यहाँ पर लाते अपनी कारें।
आप तो आम है कृपया अगले गेट से आप पधारें।

सर चकराना बंद हुआ पर बहुत ही गुस्सा आया।
सिक्योरिटी को मन ही मन में हमने ख़ूब सुनाया।

खूब सुनाया गुस्से में और कार घुमाई।
अगले गेट पे पहुँचे और एंट्री करवाई।

अंदर तो हर ओर लगा था कारों का रंग रेला।
मानो जैसे लगा हुआ हो कोई कुम्भ का मेला।

कुम्भ का मेला देख लगा कि कोई बिछुड़ ना जाए।
इसीलिए हम कार हमारी पेड़ से बाँध के आए।

बाँध के आए कार, शिशु भी बाँध के लाए।
जैसे तैसे क्लास रूम तक हम आ पाए।

बच्चों से मिल के हम सब भी बन जाते है बच्चे।
बचपन के दिन वाकई में होते थे कितने सच्चे।

क्लास रूम में मचा हुआ था ये कैसा कोहराम।
पैरेंट खाएं टीचर का सर टीचर जपे श्री राम।

टीचर जपे श्रीं राम, हमारा नंबर आया।
मुझको अपने बालक के संग पास बुलाया।

टीचर बोली आप से ये उम्मीद नहीं थी पालक।
बहुत ही मस्ती करता है ये आपका नटखट बालक।

तुरत फुरत में हमने बालक से माफ़ी मंगवाई।
ना चाहकर भी हंसी ख़ुशी से कसम भी हमने खाई।

कसम भी हमने खाई और फिर जोश उड़ गए।
मार्क्स सुने जब हमने और फिर होश उड़ गए।

बालक को समझाया कुछ तो रखो पिता की इज़्ज़त।
मुफ़्त में क्यों करवाते हो तुम जनता बीच फ़ज़ीहत।

घर पहुंचे और खत्म हुआ ये पिता गुरु सम्मेलन।
इससे तो अच्छा मैं हो आता कोई कवि सम्मेलन।

पैरेंट टीचर मीट बन गया फैशन का एक अड्डा।
एक तरफ है मिसेस शर्मा एक तरफ मिस चढ्ढा।
पैरेंट कहलाते है कस्टमर, टीचर बन गए एजेंट।
जिसकी जितनी जेब है गहरी उसमे उतना टैलेंट।
कहने को तो शिक्षा का सबको मौलिक अधिकार।
सबने मिलके इसको भी अब बना दिया व्यापार।
डरा डरा के सबको लूटो यही कहता है प्रबधंन।
सरस्वती के भक्तो पर अब उल्लुओ का है बंधन।




बीज गणित (algebra)

बीज गणित (algebra)
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मैं कौन हूँ?
ये एक सवाल है,
जीवन के बीज गणित (algebra) का,
जिसमे मैंने मान लिया है
कि मैं x हूँ।
मेरी किसी से बहुत बनती है,
किसी से कोई मतलब नहीं,
या किसी से कोई अनबन है,
कुल मिला के इस प्रकार के,
मेरे सबसे व्यक्तिगत समीकरण (equation) है।
साम, दाम, दंड, भेद,
ये चार सूत्र (formule) हैं।
इन्हें इस्तेमाल कर अपने व्यक्तिगत
समीकरणो से खेलता हूँ।
और x को हमेशा
जिताने की कोशिश करता हूँ।
यही x है यही मैं हूँ।
एक समय t पर,
कुछ ऐसा हुआ कि,
सारे समीकरण और सूत्र
जवाब दे गए।
x को भी हार माननी पड़ी।
नए समीकरण और सूत्रो की तलाश हुई,
अपने अंदर झाँका,
कुछ प्रेम के समीकरण और सूत्र मिले,
उसमें और झाँक के देखा
तो x को अनंत पाया,
और उसी क्षण मैं का हो गया सफाया।
मैं कुछ ना होकर भी बहुत कुछ हूँ,
शायद यही जवाब है ऊपर लिखे सवाल का।

पता नहीं, शायद