अक्कम पक्कम पार्थ पेस
(दीवारों के भी कान होते हैं)
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अक्कम पक्कम
पार्थ पेस
तमिल में
और हिंदी में
दीवारों के भी कान होते है
भाषाएँ
नहीं जान पाई आज तक
दीवारों की आँख भी होती है
मुँह भी होते है, नाक भी होती है
दीवारों को रंगा जा सकता है
अनेक राजनीतिक रंगों में
होती है
दीवारों की अपनी भाषा
जिसे समझने के लिए
बनना पड़ता है
इट और पत्थर
सदियों से दीवारें
स्वयं की जनक
मज़दूरों की
नहीं हो पाई सगी
दीवारें देती है
चुनने का अहसास
घर में बने आलीशान कमरे
या सलीम और अनारकली की मोहब्बत
अक्कम पक्कम
पार्थ पेस
दीवारों के भी कान होते है
और कान दिमाग के नज़दीक होता है
दिल के नहीं
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