दिन ब दिन आँखें
झील होती जा रही हैं
रोना बिलकुल बंद है
पानी खतरे के निशान के ऊपर
रुका हुआ है
नींद डूबकर मर गई है
आँखों की पुतलियों पर तैरती
अपनी ही नींद की लाश
काफी नहीं है
मुझे भीतर तक जगाने के लिए
शायद मौत भी काफी ना हो
मुझे भीतर तक सुलाने के लिए
झील होती जा रही हैं
रोना बिलकुल बंद है
पानी खतरे के निशान के ऊपर
रुका हुआ है
नींद डूबकर मर गई है
आँखों की पुतलियों पर तैरती
अपनी ही नींद की लाश
काफी नहीं है
मुझे भीतर तक जगाने के लिए
शायद मौत भी काफी ना हो
मुझे भीतर तक सुलाने के लिए
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