Sunday, October 24, 2021

सम्भावनाएँ

 


बूँदो सी होती है सम्भावनाएँ
पिघला सकती है कोई भी मंज़र

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अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने व्यक्तित्व, अपने चरित्र, अपनी समझ या अपने मद में। हम रह सकते हैं अपने रंग में भी पर कलम से...