रावण दहन
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आग को बुझाना हो
तो आग में कूदना पड़ता है अक्सर
तुम पुतले हो
रावण तो है निमित्त मात्र
कभी आग से होकर निकलो
सुलगो पर राख ना बनो
निखरों पर ख़ाक ना बनो
बिखरो पर मत आओ रोशनी के आड़े
दोनों आँखों को
दोनों हाथों से
मन का मैल दहकने तक
तपाते रहो
मैल जब हो जाएगा भाप
भीतर की आग भी
पड़ जाएगी ठंडी
फिर ज़रा गौर करना
तुम्हें राम मिलेंगे।
तो आग में कूदना पड़ता है अक्सर
तुम पुतले हो
रावण तो है निमित्त मात्र
कभी आग से होकर निकलो
सुलगो पर राख ना बनो
निखरों पर ख़ाक ना बनो
बिखरो पर मत आओ रोशनी के आड़े
दोनों आँखों को
दोनों हाथों से
मन का मैल दहकने तक
तपाते रहो
मैल जब हो जाएगा भाप
भीतर की आग भी
पड़ जाएगी ठंडी
फिर ज़रा गौर करना
तुम्हें राम मिलेंगे।
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