Monday, October 14, 2019

सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच
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यह कैसा प्रेम है
जो पल रहा है
बारूद के ढेर पर?

ये कैसा धर्म है
जो बेझिझक देता है
बंदूक चलाने की हिदायत?

ये कैसा सत्य है
जो बम के धमाकों से
सुनाना चाहता है
अपनी आवाज़?

ये कैसी शांति है
जिसे किसी भी युद्ध से
कोई परहेज़ नहीं?

ये कैसी इंसानियत है
जिसे अपनी हैवानियत से
अब कोई शर्म नहीं?

ये कैसी सकारात्मक सोच है
जिसने विलोम
और पर्यायवाची शब्दों के बीच
मिटा दिए है
सारे फासले?
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अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने व्यक्तित्व, अपने चरित्र, अपनी समझ या अपने मद में। हम रह सकते हैं अपने रंग में भी पर कलम से...