Wednesday, January 30, 2019

बुखार

बुखार
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माहौल की
बगल वाली
अंधेरी
बदबुदार गलियों में
कुछ देर
अपनी कलम फसाकर
मैं देख लेता हूँ
अपनी स्याही का उबाल

जब सब कुछ ठीक ना हो या
बहुत देर हो गई हो
तब मर्ज़
और दवा के बीच का फर्क लिख पाना
आसान नहीं होता
कुछ लिखो
तो जलने लगते है कागज़
और माथे पे रखने के लिए
ठंडे पानी में भीगी पट्टियां
हर बार नसीब नहीं होती

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