Thursday, January 03, 2019

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जीने का शोर
बिखरा हुआ था
मेरी डायरी के
कुछ पन्नों पर

आदतन
तम्हारी खुमारी का कोई प्याला
टूटा होगा कहीं
आदतन
रिश्तों को समेटते समेटते
मौत की खामोशी
चुभ गयी होगी
मेरी उंगलियों में कहीं

एक महीन
मगर गहरा फासला
अब भी है
बरकरार
तुम्हारी रेड वाइन
और मेरे ब्लड ग्रुप में

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