Thursday, January 03, 2019

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अपने दोनों हाथों से
मेरी दोनों आँखें मूंदकर
एकांत ने मुझसे पूछा
पहचान, में कौन हूँ?

बिन पहचान की पहचान
बिन आवाज़ की आवाज़
बिन शब्दों की किताब
बिन बोली की भाषा
अनेक शून्य का अनंत
अनेक अनंत का शून्य
बिन खुशबू की खुशबू
समझ से परे
बहुत कुछ तैरने लगा
मन के आसमान में

बंद आँखों में ही
बहुत चुप रहने लगा हूँ
जानता हूँ
हर जवाब
बोलते ही हो जाएगा झूठ
बेवजह आँख खुल जाएगी
बेवजह मारा जाऊँगा मैं

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