Thursday, January 17, 2019

मैं कहाँ हूँ

मैं कहाँ हूँ
*****

तुम्हें लिखना होगा
एक नया भूगोल
जो हो सकता है
गोल ना होकर
कहीं कहीं
चपटा सा हो
अपने साथ
एक वास्तविक
क्षितिज लिये हुए
तुम्हे खोजना होगा
वो चुम्बक
जिसे ज्ञात हो
मेरी दशा और दिशा
तुम्हें बनाने होंगे
कई नक्शे
जिसमें ज़िक्र हो
रास्तों पर बहते मेरे रक्त का
स्मारकों में लगी मेरी हड्डियों, खालों का
मेरी संवेदनाओं के मौसम का
मेरी मिट्टी के स्वभाव का
तुम्हें जाना होगा
उन ध्रुवों पर
जहाँ बसता है
मेरा आत्मीय स्नेह
मेरा निश्छल प्रेम
तुम्हें समझना होगा
भूगोल की भौगोलिक समझ
और इतिहास के हर युद्ध के बीच का रिश्ता

शायद तुम जान पाओ
मैं कहाँ हूँ
इस सवाल के जवाब का
मेरे अक्षांश और देशांतर से
कोई वास्ता नहीं

1 comment:

Meena sharma said...

सुंदर रचना !
मेरे ब्लॉग का लिंक https://meenasharma.blogspot.in

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा में...

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने व्यक्तित्व, अपने चरित्र, अपनी समझ या अपने मद में। हम रह सकते हैं अपने रंग में भी पर कलम से...