पापा के कॉलेज का एक संस्मरण
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क्रषि विज्ञान की एक क्लास में एक बार बहुत मज़ेदार प्रश्न सामने आया। प्रोफ़ेसर ने पूछा “अगर चने के खेत में बादाम का पेड़ उग आये तो इस वाक़ये के क्या मायने हो सकते हैं?” किसी ने कहा “एक छोटी सी गोल मेढ़ बनाकर उस पौधे को चने के खेत में ही छोड़ दिया जाए, आख़िर पेड़ बादाम का है किसान को फ़ायदा दे सकता है” किसी ने कहा “नहीं, उस पेड़ को खेत से निकालकर किसी और जगह पर लगाया जाए ताकि चने की फसल को अपना पूरा पोषण मिल सके, आख़िर उद्येश तो चने की खेती ही है जो रबी और ख़रीब की फसल के बीच में लेना ज़रूरी है ताकि ज़मीन की उर्वरक शक्ति कम ना हो”। ये सब जवाब एक अच्छे जवाब के आसपास थे पर शायद पूरे जवाब के आसपास नहीं थे। आख़िर में एक जवाब आया “क्रषि विज्ञान के हिसाब से अगर खेती चने की हो रही हो और खेत में चने के अलावा कुछ और उग आए तो वो खरपतवार है, फिर वो बादाम का पेड़ ही क्यों ना हो और खरपतवार किसी भी खेत के लिए कचरा है। जहाँ हमारी ज़रूरत ना हो वहाँ हमारा होना खरपतवार है और जहाँ हमारी ज़रूरत है वहाँ हम उपस्थित ना हो तो हम में और कचरे में कोई फ़र्क़ नहीं।”
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