Tuesday, May 28, 2024

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा में...

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने व्यक्तित्व, अपने चरित्र, अपनी समझ या अपने मद में। हम रह सकते हैं अपने रंग में भी पर कलम से कली, कली से फ़ूल, फ़ूल से पंखुड़ी और पंखुड़ी के सूख कर पिस जाने तक का धैर्य भरा रंग और ख़ुशबू भरी चेतना होने से पहले हम मान लेते है उस रंग को अपना रंग जो अपना हो ही नहीं सकता। सूर्य मेरी बालकनी से उगता है ये मेरी मान्यता है मेरा रंग नहीं, मेरा सत्य नहीं।

(कन्नड़ा में कृष्ण और सत्यभामा की कथा का अलौकिक मंचन उडुपी के लोक कलाकारों द्वारा)


प्रेम

प्रेम एक ऐसा विषय है जो समझ में किसी की नहीं आता पर करना सब चाहते हैं। प्रेम की किसी भी बात पर मैंने किसी को भी तर्क और विज्ञान के आधार पर चुनौती देते नहीं देखा। प्रेम का प्रचार इतना अधिक हो चुका है कि हम चिकन से भी प्रेम करते हैं, कुत्ते से भी, इंसान से भी और पैसे से भी। प्रेम की वैज्ञानिक व्याख्या शायद भौतिक विश्व में पूरी तरह से ना मिल सके पर फिर भी प्रेम पर विश्वास होना ही चाहिए, यह बात मैंने उन लोगो से भी सुनी है जो हर बात में विज्ञान की दुहाई देते हैं। हर वो बात जो समझ में ना आये ज़रूरी नहीं वो अंधविश्वास या अवैज्ञानिक हो, और हर बात जो समझ में आये ज़रूरी नहीं उस बात का हर पक्ष विश्वास करने लायक़ हो या पूरी तरह से वैज्ञानिक हो।

पहले कम थी किताबें

 


पापा के कॉलेज का एक संस्मरण

 पापा के कॉलेज का एक संस्मरण

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क्रषि विज्ञान की एक क्लास में एक बार बहुत मज़ेदार प्रश्न सामने आया। प्रोफ़ेसर ने पूछा “अगर चने के खेत में बादाम का पेड़ उग आये तो इस वाक़ये के क्या मायने हो सकते हैं?” किसी ने कहा “एक छोटी सी गोल मेढ़ बनाकर उस पौधे को चने के खेत में ही छोड़ दिया जाए, आख़िर पेड़ बादाम का है किसान को फ़ायदा दे सकता है” किसी ने कहा “नहीं, उस पेड़ को खेत से निकालकर किसी और जगह पर लगाया जाए ताकि चने की फसल को अपना पूरा पोषण मिल सके, आख़िर उद्येश तो चने की खेती ही है जो रबी और ख़रीब की फसल के बीच में लेना ज़रूरी है ताकि ज़मीन की उर्वरक शक्ति कम ना हो”। ये सब जवाब एक अच्छे जवाब के आसपास थे पर शायद पूरे जवाब के आसपास नहीं थे। आख़िर में एक जवाब आया “क्रषि विज्ञान के हिसाब से अगर खेती चने की हो रही हो और खेत में चने के अलावा कुछ और उग आए तो वो खरपतवार है, फिर वो बादाम का पेड़ ही क्यों ना हो और खरपतवार किसी भी खेत के लिए कचरा है। जहाँ हमारी ज़रूरत ना हो वहाँ हमारा होना खरपतवार है और जहाँ हमारी ज़रूरत है वहाँ हम उपस्थित ना हो तो हम में और कचरे में कोई फ़र्क़ नहीं।”

Whiteness

 


उम्मीद पे दुनिया कायम है

 


सूखे ही लाना रंग

 


अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा में...

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने व्यक्तित्व, अपने चरित्र, अपनी समझ या अपने मद में। हम रह सकते हैं अपने रंग में भी पर कलम से...