अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने व्यक्तित्व, अपने चरित्र, अपनी समझ या अपने मद में। हम रह सकते हैं अपने रंग में भी पर कलम से कली, कली से फ़ूल, फ़ूल से पंखुड़ी और पंखुड़ी के सूख कर पिस जाने तक का धैर्य भरा रंग और ख़ुशबू भरी चेतना होने से पहले हम मान लेते है उस रंग को अपना रंग जो अपना हो ही नहीं सकता। सूर्य मेरी बालकनी से उगता है ये मेरी मान्यता है मेरा रंग नहीं, मेरा सत्य नहीं।
बेखुरी
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Tuesday, May 28, 2024
अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा में...
प्रेम
प्रेम एक ऐसा विषय है जो समझ में किसी की नहीं आता पर करना सब चाहते हैं। प्रेम की किसी भी बात पर मैंने किसी को भी तर्क और विज्ञान के आधार पर चुनौती देते नहीं देखा। प्रेम का प्रचार इतना अधिक हो चुका है कि हम चिकन से भी प्रेम करते हैं, कुत्ते से भी, इंसान से भी और पैसे से भी। प्रेम की वैज्ञानिक व्याख्या शायद भौतिक विश्व में पूरी तरह से ना मिल सके पर फिर भी प्रेम पर विश्वास होना ही चाहिए, यह बात मैंने उन लोगो से भी सुनी है जो हर बात में विज्ञान की दुहाई देते हैं। हर वो बात जो समझ में ना आये ज़रूरी नहीं वो अंधविश्वास या अवैज्ञानिक हो, और हर बात जो समझ में आये ज़रूरी नहीं उस बात का हर पक्ष विश्वास करने लायक़ हो या पूरी तरह से वैज्ञानिक हो।
पापा के कॉलेज का एक संस्मरण
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अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा में...
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