Saturday, September 07, 2019

सम्पर्क का टूटना

सम्पर्क का टूटना
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ब्रह्माण्ड का वह कण
एक खास योजना के तहत
किया गया था प्रक्षेपित
नाभि के वायुमंडल से
बाहर आते ही
नाल काट दी गयी उसकी
अब उसे पता करना था
आखिर क्यों और किसने
उसे किया है प्रक्षेपित?
एक ओर
उसे सिखायी जाने लगी
उसके ऑर्बिट की व्याकरण
उसे समझाया जाने लगा
ब्रह्माण्ड में किसी केंद्र का चक्कर लगाना
हर कण की है नियति
जैसे पृथ्वी करती है सूर्य की परिक्रमा
इलेक्ट्रान और प्रोटॉन सतत घुमते है
अणु के केंद्र के चारों ओर
दूसरी ओर
उसने चीटियों को अपने वज़न से ज़्यादा बोझ
सर पर उठाकर
अनुशासित कतारों में चलते हुए देखा
उसने देखा कि
फूल डालियों से टूटकर भी
फैला रहे हैं खुशबू
पानी ने अपना रास्ता खुद बनाया
बुझाने लगा सबकी प्यास
और कहलाने लगा नदी
उसने देखा कि
नवग्रह और सूरज व्यस्त है
ब्रह्माण्ड की चाकरी में
पर कुछ कविताओं ने कोशिश की है
उन अंधेरों तक पहुँचने की
जो ब्रह्माण्ड की पहुँच से
अब भी अछूते है शायद
उसने सवाल किये
आखिर क्यों कई शेर
लगाते है एक हिरण के चक्कर?
आखिर क्यों मंडराते है गिद्ध
मरती हुई ज़िंदा लाशों के इर्द गिर्द?
कुछ आँखें
आखिर क्यों टटोलती है
हर सुंदरता में
एक हवस से भरी
भद्दी मानसिकता ?
सवाल कठिन थे
जवाब आसान थे
उसने जान लिया था
उसे क्यों किया गया है प्रक्षेपित
उसने खुद को फेंक दिया था बाहर
अपने ऑर्बिट से
सबको लग रहा था
भटक गया है वह
फँस गया है किसी चक्कर में
सभी के लिए सबसे आसान था ये मान लेना
कि उसके केंद्र से टूट गया है उसका सम्पर्क।
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