रूह की भाप बनी है बदरा,
घुमड़ घुमड़ अहसास गरजते,
शब्द बाग़ हरियाली कण कण,
रूपक कलरव कान में गूँजे,
दिल के पन्ने उड़ उड़ जावें,
कलम भीगती चलती जावें,
कविताओं के मानसून में,
कविताओं की पहली बारिश
पलकों से चख ली है मैंने,
कविताओं की पहली बारिश
काँच की एक छोटी शीशी में
भरकर सहेज ली है मैंने,
काँच की उस शीशी को घर के
मंदिर के गुम्बज के ऊपर
रखकर पूजा की हैं मैंने,
कविताओं के मानसून में,
कविताएँ ही पी हैं मैंने,
कविताओं के मानसून में,
कविताएँ ही जी हैं मैंने।
घुमड़ घुमड़ अहसास गरजते,
शब्द बाग़ हरियाली कण कण,
रूपक कलरव कान में गूँजे,
दिल के पन्ने उड़ उड़ जावें,
कलम भीगती चलती जावें,
कविताओं के मानसून में,
कविताओं की पहली बारिश
पलकों से चख ली है मैंने,
कविताओं की पहली बारिश
काँच की एक छोटी शीशी में
भरकर सहेज ली है मैंने,
काँच की उस शीशी को घर के
मंदिर के गुम्बज के ऊपर
रखकर पूजा की हैं मैंने,
कविताओं के मानसून में,
कविताएँ ही पी हैं मैंने,
कविताओं के मानसून में,
कविताएँ ही जी हैं मैंने।
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