Saturday, July 20, 2019

पत्थर की मूरत

पत्थर जब टूटते है तो भगवान बनते है,
दिल जब टूटते है तो शमशान बनते है.
पत्थर की मूरत एक ऐसा झूठ है,
जिसे देख के हम सचमुच के इंसान बनते है.

निर्वाण

वो अभी-अभी निर्वाण 
प्राप्त करने की बात कर रहे थे,
मैंने कहा 3AC में वेट लिस्ट है,
स्लीपर में बुक कर दूँ?
पर ये बात उन्हें मंज़ूर ना थी।

Friday, July 19, 2019

नाखून क्यों बढ़ते हैं?

नाखून क्यों बढ़ते हैं?
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नाखून पे लगी चुनावी स्याही
उड़ जाएगी एक दिन
खुद ब खुद
या बढ़ते नाखून
खुद ब खुद
उसे दूर कर देंगे
उँगलियों की त्वचा से
मैं सभ्य हूँ
काट लूँगा अपने नाखून
अंततः
पर नहीं पूछूँगा अपने आप से
कि नाखून क्यों बढ़ते हैं?
और स्याही वहाँ क्यों नहीं लगाई जाती
जहाँ ना खून होता है ना चमड़ी?

Sunday, July 14, 2019

कविताओं का मानसून

रूह की भाप बनी है बदरा,
घुमड़ घुमड़ अहसास गरजते,
शब्द बाग़ हरियाली कण कण,
रूपक कलरव कान में गूँजे,
दिल के पन्ने उड़ उड़ जावें,
कलम भीगती चलती जावें,
कविताओं के मानसून में,
कविताओं की पहली बारिश
पलकों से चख ली है मैंने,
कविताओं की पहली बारिश
काँच की एक छोटी शीशी में
भरकर सहेज ली है मैंने,
काँच की उस शीशी को घर के
मंदिर के गुम्बज के ऊपर
रखकर पूजा की हैं मैंने,
कविताओं के मानसून में,
कविताएँ ही पी हैं मैंने,
कविताओं के मानसून में,
कविताएँ ही जी हैं मैंने।

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा में...

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने व्यक्तित्व, अपने चरित्र, अपनी समझ या अपने मद में। हम रह सकते हैं अपने रंग में भी पर कलम से...