Thursday, May 03, 2018

ये ट्रेन

सब कुछ
चल रहा होता है पीछे

हर पल
पल भर में बह जाता है
किसी अहसास के
समंदर में

ये ट्रेन
शहर तो पहुँचा देगी
पर घर नहीं।

© 2018 गौरव भूषण गोठी

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