आजकल हमारे ख्वाबों के जुनून का
उच्चतम पैमाना है
खुद बाज़ार का विज्ञापन हो जाना
जो दिखता है
वो बिकता है
गिर गिर के सीख सकता था जो
वो सीख सीख के गिरता है
खुली हुई हैं हमारी आखें
पर गिरवी है नज़रें
ऐनक की दुकान पर
चेहरे को बुद्धिजीवी बताती
एक ब्रांडेड ऐनक भी मिल गई है बाज़ार में
रिव्यू कमेंट्स, फाइव स्टार रेटिंग
और फीडबैक के हिसाब से
साफ़ साफ़ देखने का
हमारा ख्वाब
पूरा हो रहा है
हम इतने खुश
और संवेदनशील हो गए हैं कि
अक्सर भर आती है हमारी आंखें
पर नज़रें जो गिरवी रखी थी
उसकी लिखा पढ़ी
धुंधली हो रही है
खुशफहमियां कायम है अब भी
हम दुनिया की नज़रों में
खुशी खुशी मरना चाहते हैं
बाज़ार का चक्र
पुनरजनम के चक्र से
ज़्यादा चक्करदार है
मुक्ति के लिए अब
सिर्फ अच्छे कर्म काफी नहीं
गिरवी नज़रों को भी छुड़ाना होता है
बाज़ार का कोई ब्रह्माण्ड नहीं
1 comment:
That's a wonderful piece of observation. " मुक्ति के लिए अब सिर्फ अच्छे कर्म काफी नहीं गिरवी नज़रों को भी छुड़ाना होता है " - bahut sahi kaha hai. Gaurav ke techie libaas ke pichhey chhupey iss kavi ko sunkar achha laga. You inspire me, both professionally & by your poetic skills. Would love to follow your work and be inspired.
- Ansuman
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