Thursday, April 10, 2014

अपनापन

बहुत ही अपनापन था अपनों के बीच में,
ये कमबख्त जायदाद कहा से आ गयी बीच में.

तुम रोते थे तो भीगता था दिल मेरा,
एक प्यार ऐसा भी था अपने बीच में.

कुछ ना होकर भी बहुत कुछ था पास में,
अब सब होकर भी कुछ नहीं है बीच में.

दिल के दर्द बाट के भी कितने खुश थे हम,
अब खुशिया है तो दर्द क्यों है बीच में?

मैं जो भी था, सभी में था, मुझमे ना था,
अब मैं ही हूँ और कुछ नहीं है बीच में.

बस थक गया हूँ अब, के लौटु फिर वतन,
फिर पा लूं वो जो खो गया था बीच में.

–– गौरव भूषण गोठी
26.11.2013

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा में...

अधिकतर हम रहते हैं अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने व्यक्तित्व, अपने चरित्र, अपनी समझ या अपने मद में। हम रह सकते हैं अपने रंग में भी पर कलम से...